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Monday 28 March 2016

सामाजिक बहिष्कार के अवसान से बनेगी सामाजिक न्याय की नींव

एजुकेशन विजय, चंडीगढ़, 26 मार्च। "सामाजिक बहिष्कार के अवसान से बनेगी सामाजिक न्याय की नींव : राष्ट्रीय संगोष्ठी में निकला निष्कर्ष", भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय के विधि विभाग में "रींविसजजिंग सोशल जस्टिस इन द एरा ऑफ़ ग्लोबलाइजेशन:  इश्यूज एंड डिलेम्मास" विषय पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में देश भर से  आये लगभग 125 प्रतिभागियों ने अपने अपने शोध पत्रों को पढ़ने और आपसी विचारों में यह निष्कर्ष निकाला। इस संगोष्ठी को विधि विभाग के सभागार में किया गया। इस संगोष्ठी के प्रथम सेशन में आयोजित उद्घाटन समारोह में इस्पेक्टर जनरल डॉ सुमन मंजरी ने बतौर मुख्या अतिथि शिरकत की। इस समारोह में गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के प्रोफ एम. ए. वाणी विशिष्ट अतिथि थे और उन्होंने मुख्य वक्ता के रूप में प्रतिभागिओं को सम्बोधित किया। कार्यक्रम की अधयक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ आशा काद्यान ने की।
प्रतिभागिओं को सम्भोदित करते हुए डॉ सुमन मंजरी ने कहा कि समाज में संवैधानिक कानून के साथ साथ सामाजिक कानून भी सक्रिय रूप से काम करते हैं और संवैधानिक कानूनों को प्रभावशाली  रूप से लागू करने के लिए ज़रूरी है कि सामाजिक कानूनों को अनुकूल बनाया जाए।   उन्होंने कहा कि सरकार और संविधान तभी प्रभावी होते हैं जब सामाजिक तौर पर उन्हें अपनाया जाता है और इसके लिए ज़रूरी है जागरूकता। डॉ सुमन ने कहा कि एक जागरूक नागरिक समझता है कि मौलिक अधिकारों के साथ साथ मौलिक कर्तव्यों का भी निर्वाह ईमानदारी से करना चाहिए। उन्होंने अपना वक्तव्य ख़त्म करते हुए कहा कि नर में ही नारायण बस्ते हैं और इसलिए ज़रूरी है कि एक स्वच्छ तथा सकरात्मक समाज उदित हो। प्रोफ वाणी ने मुख्य सम्बोधन में प्रतिभागिओं के साथ साथ मौजूद छात्राओं को प्रोत्साहित करने वाला वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि हम सबको चाहिए कि हम तर्कसंगत सभाषन युक्त ज्ञान अर्जन की चेष्टा करें क्यूंकि तभी हम चीज़ों को समझ सकेंगे और अपने विचार रख सकेंगे।  इसके लिए शिक्षकों की भूमिका अहम होती है क्यूंकि शिक्षक ही छात्राओं को उस तरह का ज्ञान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज की ज़रुरत छात्राओं को यह पढ़ाने की नहीं है कि किस अदालत में क्या फैसला हुआ बल्कि यह सिखाने की है कि वे अपने विचारों से अदालत तथा न्यायाधीशों के फैसलों पर अपनी छाप छोड़ सकती हैं।  उन्होंने आगे कहा कि शिक्षक ही विचारों का जनक है और वही उसे छात्राओं को भी सीखना होगा। प्रोफ वाणी ने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए यह ज़रूरी है क्यूंकि सामाजिक न्याय का मूलभूत आधार है ख़ुशी, दूसरों की तथा अपनी। भावनाएं ही हमें दूसरी चीज़ों से अलग बनाती हैं और यह आवश्यक है कि हम इसे संजों के रखें।  सभा को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रोफ आशा काद्यान कि सामाजिक न्याय के लिए महिलाओं को सशक्त करना बहुत आवशयक है क्यूंकि वे समाज का 50 प्रतिशत हिस्सा है और सामाजिक समानता के लिए उनका सशक्तिकरण आवश्यक है।  उन्होंने कहा कि इस तरह की संगोष्ठियां इस दिशा में एक अहम कदम है क्योंकि यह वो मंच है जहाँ देश का संबसे प्रतिभाशाली दिमाग साथ बैठ कर विचार-विमर्श करते हैं। प्रोफ काद्यान ने आगे कहा कि नारी उत्थान के लिए जो भी आवश्यक है वो हम कर रहे हैं और उन्हें विश्वास है कि  छात्राएं आगे चलकर एक न्यायसंगत समाज के निर्माण में अग्रिणी भूमिका निभाएंगी।  इस अवसर पर संगोष्ठी के निदेशक प्रोफ विमल जोशी, डॉ सुमन दलाल, डॉ सुमित्रा, प्रोफ महेश दाढीच, डॉ सीमा मालिक, डॉ कृतिका दहिया,  डॉ सुषमा जोशी, डॉ (मेजर) अनिल बल्हारा, समेत अन्य मौजूद थे। 

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