एजुकेशन विजय ,इलाहाबाद, 29 मार्च। आज चिंतन की व्यापकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। व्यावहारिक नीतिशास्त्र देशकाल के अनुसार चिंतन की दिशाओं और आयामों को व्यापक बनाने का कार्य कर सकता है, इसकी सार्थकता इसी में है। आज व्यावहारिक नीतिशास्त्र को अपनी समीक्षात्मक दृष्टि समाज के उन स्वार्थी तत्वों पर भी रखनी है जो चिन्तन की व्यावहारिकता को सीमित करना चाहते हैं। उक्त विचार उ.प्र राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय की मानविकी विद्याशाखा के तत्वावधान में आयोजित व्यावहारिक नीतिशास्त्र महत्व एवं चुनौतियां विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व कुलपति प्रो.जनक पाण्डेय ने व्यक्त किया।उन्होंने कहा कि परिवर्तन का बौद्धिक आधार निर्धारित करने में व्यावहारिक नीतिशास्त्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने व्यावहारिक नीतिशास्त्र के अन्तर्गत बायोएथिक्स, उपभोक्ता संरक्षण, सामाजिक समानता एवं मानवतावादी दृष्टिकोण आदि विभिन्न आयामों पर गंभीर चिंतन किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। विशिष्ट अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. एस.के सेठ ने कहा कि दर्शनशास्त्र हमें जीवन का लक्ष्य देता है। दर्शनशास्त्र ज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो संसार की वस्तुओं के विषय में दृष्टिकोण की खोज, चिन्तन और उसकी तार्किक समीक्षा करता है। कहा कि दर्शन शास्त्र के चिन्तन के आयाम तथ्यात्मक रूप से जो ज्ञान पहले से हमारे सामने उपस्थित रहता है उसके विषय में उचितानुचित विवेक को उद्घाटित करना और सत्य की खोज करना, इनसे सम्बनित मानदण्डांे की खोज करना है।संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एम.पी दुबे ने कहा कि किसी वस्तु की प्रकृति को जानने का प्रयास ही दर्शन है। नैतिकता केवल सिद्धान्त में ही नहीं वरन व्यवहार मंे भी अच्छी हो सकती है, इसके लिए चिंतन के आयामों को मजबूत करना होता है। कहा कि इच्छा मृत्यु, भू्रण हत्या, गर्भपात, पर्यावरण संरक्षण, विवाह पूर्व संबंध, मृत्युदण्ड, शरणार्थी, राजनीतिक हिंसा आदि कई ऐसे विषय हैं, जिन पर व्यावहारिक नीतिशास्त्र के अन्तर्गत विचार विमर्श किए जाने की आवश्यकता है। अतिथियांे का स्वागत संयोजक डा. आरपीएस यादव ने एवं सेमिनार की विषयवस्तु आयोजन सचिव डा.अतुल कुमार मिश्र ने प्रस्तुत की। सरस्वती वंदना डा.जया मिश्रा ने तथा संचालन डा.स्मिता अग्रवाल ने व धन्यवाद ज्ञापन पुस्तकालयाध्यक्ष डा.टीएन दूबे ने किया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो.जटाशंकर त्रिपाठी एवं विशिष्ट अतिथि महानिरीक्षक निबन्धन प्रदीप कुमार तिवारी ने व्यावहारिक नीतिशास्त्र की उपयोगिता पर विचार व्यक्त किये।
Wednesday, 30 March 2016
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