एजुकेशन विजय, वाराणसी,12मार्च। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.गिरीश त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान में मानव जाति अपनी पहचान के संघर्ष के दौर से गुजर रही है जिसके कारण वैमनस्य व घृणा की घटनाएँ विश्वभर में बढ़ती जा रही हैं। बहु सांस्कृतिक वाद अपनी पूर्णता से भारतीय दर्शन में मौजूद है। सृष्टि के आरम्भ से ही भारतीय नीतियों में ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की भावना प्रभावी रही है।शनिवार को विवि के शताब्दी वर्ष समारोह के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा संकाय, कमच्छा में संकाय एवं भारतीय शिक्षक प्रशिक्षक संघ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित भारतीय संदर्भ में शिक्षा में बहुसंस्कृतिवाद विषयक 49वीं वार्षिक संगोष्ठी को कुलपति सम्बोधित कर रहे थे। बतौर मुख्य अतिथि प्रो0 त्रिपाठी ने कहा कि ‘जियो और जीने दो’’ एक भारतीय सिद्धान्त है जिसे सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकार किया है। हमारे राष्ट्र में बहुसांस्कृतिकतावाद जीवन जीने की एक राह है एवं जीने का तरीका है। गोष्ठी का सदारत करते हुए भारतीय शिक्षक प्रशिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो0 रमेश घंटा ने विश्व में मौजूद विभिन्न सांस्कृतिक, भाषायी, आर्थिक, धार्मिक विभिन्नताओं का महत्व बता जन को महत्वपूर्ण बताया । कहा कि वर्तमान वैश्विक समाज में शिक्षकों को बहुसांस्कृतिवाद सम्बन्धी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे विभिन्न विद्यार्थियों के समन्वित विकास में अपना अधिकतम योगदान दे सके। संगोष्ठी में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए 250 से भी अधिक प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया। इस अवसर पर कुलपति ने संकाय के नवनिर्मित शताब्दी द्वार का भी उद्घाटन किया। संगोष्ठी के आगाज के पूर्व सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया जिसमें संकाय के छात्र-छात्राओं तथा प्रो0 रेवती साकलकर की प्रस्तुति सराहनीय रही। उद्घाटन समारोह का संचालन प्रो0 अंजली बाजपेयी ने किया। प्रो0 प्रदीप चन्द्र शुक्ला ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रो0 सुधीर रेड्डी, उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद तथा प्रो0 आशा पाण्डेय, शिक्षा संकाय को इस अवसर पर भारतीय शिक्षक प्रशिक्षक संघ द्वारा सम्मानित किया गया। गोष्ठी में प्रो0 प्रदीप चन्द्र शुक्ल, प्रो0 हरिकेश सिंह, प्रो0 आशा पाण्डेय, प्रो0 पी0 एन0 सिंह यादव, प्रो0 गीता राय, प्रो0 एन0एन0 पाण्डेय, प्रो0 कल्पलता पाण्डेय, प्रो0 के0 एस मिश्रा, प्रो0 अनिता रस्तोगी आदि उपस्थित रहे।
Monday, 14 March 2016
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