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Thursday, 10 March 2016

छात्रावास बने धन उगाही का जरिया, अधीक्षकों की मनमानी चरम पर

एजुकेशन विजय,पन्ना, 9 मार्च। जिले में संचालित हो रहे छात्रावासों की दशा भी कुछ ऐसी ही नजर आ रही है। शासन द्वारा भले ही गरीब बच्चों के लिए छात्रावासों में रहकर अध्ययन करने की व्यवस्था कर उन्हें शिक्षा के मुख्य धारा से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है, जिससे की अशिक्षा के दंश को मिटाया जा सके, लेकिन शासन के इन दावों को प्रशासनिक अधिकारियों व छात्रावासों की देखरेख कर रहे अधीक्षक एवं वार्डनों के तानाशाही रवैये के चलते शासन की योजनाओं का समुचित लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है यहां तक कि छात्र छात्राओं के लिए शासन द्वारा भोजन की व्यवस्था कराई गई है। और जहां शासन द्वारा शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं।वहीं दूसरी ओर शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार की बागडोर संभालने के लिए नियुक्त शासकीय नुमाइंदो द्वारा शासन की योजना में पलीता लगाने में कोई कसर बाकीं नहीं छोड़ी जा रही है। जिसका ही परिणाम है शहर सहित ग्रामीण इलाकों के शिक्षा के सरकारी महकमों मेें शैक्षणिक स्तर में गिरावट बनी हुई है। जिले मेें गरीब बच्चों के लिए छात्रावासों में रहकर अध्ययन करने की व्यवस्था कर उन्हें शिक्षा के मुख्य धारा से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है, जिससे की अशिक्षा के दंश को मिटाया जा सके, लेकिन शासन के इन दावों को प्रशासनिक अधिकारियों व छात्रावासों को देखरेख कर रहे अधीक्षक एवं वार्डनों के तानाशाही रवैये के चलते शासन की योजनाओं का समुचित लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है।छात्रावासों से भोजन का मीनू गायब
छात्र-छात्राओं के लिए शासन द्वारा भोजन की व्यवस्था कराई गई है, नियमानुसार मीनू के आधार पर भोजन उपलब्ध कराने का दावा तो किया जाता है, लेकिन हकीकत देखे तो विद्यार्थियों की थाली से मीनू का मापदण्ड नदारत ही दिखाई पड़ता है। जबकि शासन द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति छात्रावास एवं कस्तूरबा गांधी छात्रावासों के लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के निष्क्रिय रवैये के चलते शासन के सभी वायदे खोखले ही साबित हो रहे हैं। गौरतलब है कि शासन द्वारा जिला शिक्षा केन्द्र के माध्यम से जिले में कस्तूरबा गांधी छात्रावास की संचालित किये जा रहे हैं, लेकिन वहां भी ढाक के तीन पात वाली कहावत सही चरितार्थ होती नजर आ रही है।जेबें भरने में लगे छात्रावास अधीक्षक
जिले में संचालित छात्रावासों में गरीब बच्चियों को ठहरने, खाने, छात्रवृत्ती व पठन-पाठन की समुचित  व्यवस्था का खर्चा शासन वहन करती है। ताकि गरीब विद्यार्थी भी शिक्षित हो सके। इनके पठन-पाठन के साथ साथ ठहरने भोजन संबंधी व्यय को लेकर शासन द्वारा लाखों रूपये छात्रावासों को उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि इन बच्चों का भविष्य संवर सके। वो भी शिक्षित होकर देश का नाम रोशन कर सकें। शायद शासन का यह निर्देश छात्रावासोंं में नही लागू होता हैं। यहां तो   आजाक विभाग व शिक्षा केन्द्र व छात्रावासों के वार्डन के बीच आपसी सुलह का कार्य होता है, जो भी निर्देश जिला शिक्षा केन्द्र के अधिकारियों से प्राप्त होता है। उन्हीं नियमों पर छात्रावास अधीक्षक और वार्डन कार्य करते हैं । वहीं वर्तमान में जिले में संचालित आदिम जाती कल्याण विभाग के छात्रावासों को सुदृढ़ व्यवस्था को भूलकर कुछ को छोडक़र अधिकांश छात्रावास अधीक्षक अपनी जेबों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। छात्रावास में रह रहे विद्यार्थियों से यदि पूंछा जाता है तो दबी जुबान में सब कुछ बयां कर देते लेकिन इनके मन में एक डर यह भी रहता है कि कहीं वार्डन या छात्रावास अधीक्षक को जानकारी न हो जाए जिस वजह से कोई भी बात खुलकर बताने को तैयार नहीं होते। अगर कुछ बातें छात्रावास के बाहर चली गई तो इन्हें डांट फटकार भी सुननी पड़ती है वहीं छात्रावास से हटाए जाने का डर छात्रों को सताता रहता है। छात्रावासों की बात करें तो मीनू के आधार पर भोजन, नहाने की व्यवस्था जहां बद्तर नजर आती है वहीं शासन द्वारा लाखों  रूपये खर्च करने के बाद भी छात्रावासों में रह रहे विद्यार्थियों को पोष्टिक आहार, फल दूध जैसे खाद्य सामग्री नदारत रहती है। जबकि इसके बदले में भारी भरकम राशि छात्रावास अधीक्षकों एवं वार्डनें को खर्च करने के लिए शासन द्वारा प्रतिमाह दी जाती है।छात्रावासों में नहीं मिल पा रही कम्प्यूटर शिक्षा
जिले में संचालित हो रहे छात्रावासों में भृष्टाचार हावी होता नजर आ रहा है, जिसका ही परिणाम है कि छात्रावासों में बच्चों को समुचित सुविधा नहीं मिल रही है, यही नहीं योजनाओं पर भी छात्रावास अधीक्षक कुण्डली मारकर धन उगाही कर रहे हैं, छात्रावासों में विद्यार्थियों को कम्प्यूटर की शिक्षा हांसिल हो सके। लेकिन छात्रावासों में कम्प्यूटर रखे गए हैं लेकिन इन कम्प्यूटरों के बारे में अगर विद्यार्थियों से पूंछा जाये तो उन्हें इसका ज्ञान नहीं है इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि छात्रावासों मेें विद्यार्थियों को कम्प्यूटर ज्ञान से दूर रखा गया है। यहां तक कि कई छात्रावासों से तो कम्प्यूटर ही गायब हो गये हैं।